Friday, January 1, 2016

स्वर्ग की सीढ़ी -----भरमौर घाटी

                            स्वर्ग   की सीढ़ी =========== भरमौर घाटी

     हिमाचल प्रदेश का  जिला चम्बा अपने गौरव मय इतिहास और कला - संस्कृति की दृष्टि से  विख्यात रहा है।  चम्बा मुख्यालय से 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित क़स्बा भरमौर   दसवीं सताब्दी से पूर्व चम्बा रियासत  की राजधानी   रही  ।   रियासत चम्बा की  सीमाएं उत्तर में जम्मू -कश्मीर  के  पाडर  व्   लाहौल तक के क्षेत्रों  में फैली  थी।  पौराणिक मान्यता के अनुरूप वर्तमान मंदिर प्रांगण में माता भरमाणी निवास करती थीं ,चौरासी सिद्धों व् नव नाथों के आगमन पश्चात भगवान शिव की अनुकंपा से यहां 84 मंदिर स्वयं -भू निर्मित हुए.
चौरासी मंदिर परिसर - भरमौर
         कालांतर में ब्रहमपुर के नाम से  अस्तित्व में आया कस्वा आज भरमौर ,  शिव -शक्ति  के मूल निवास के तौर पर जाना जाता है । उपमंडल मुख्यालय के समीप चौरासी मंदिर परिसर जनपद  के लोगों   की  आस्था का मुख्य  केंद्र  है  जिसमें विशाल चबूतरे पर शिखर शैली में निर्मित  भव्य मंदिर में भगवान शिव विराजते है। पंजाबी श्रद्धालु इन्हे मणिमहेश मंदिर के नाम से भी  पुकारते है।  मुख्य प्रवेश द्वार के समीप श्री गणेश मंदिर स्थापित है जिसे श्री मेरु वर्मा द्वारा गुग्गा मिस्त्री से बनवाने का उल्लेख मिलता है।
          परिसर में विराजमान महिषासुर  मर्दिनी लखना माता का मंदिर  अद्वितीय काष्ठ कलाकृतियों  युक्त  छठी शताब्दी  में निर्मित किया गया है।  मान्यता के अनुरूप लखना माता  (  लखणाई  भगवती ) जीव में  कर्म व् विधि  भाव  के लेखे -जोखे को प्रदान करने वाली शक्ति के रूप में स्थनीय लोगों में एक विशेष आस्था के तौर प्रसिद्व  है। मंदिर के पुजारी चैन दत्त शर्मा  कहते है की  महिलाओं में प्रसव पीड़ा  कम करने के लिए मंदिर     प्रांगण में  निर्मित यंत्र का जलाभिषेक करके वही जल गर्भवती महिला को पिलाया जाता है। लखना  माता मंदिर   प्रांगण  में  माता  भरमाणी एवं कार्तिक स्वामी के मंदिर भी मौजूद है।
        मंदिर परिसर के बीच अर्धगंगा जलाशय से निकलने वाले जल को  वैतर्णी नदी के रूप  में जाना जाता है , जिसका उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में आता है ।
       दुनिया में एक मात्र   श्री  धरम राज मंदिर  ( भेवव्ड़ महादेव ) और चित्र गुप्त   की  कचहरी यहाँ स्थापित होने से आत्मा के कर्मो का हिसाब यहीं होता है ,और  तय  होता है स्वर्ग व नर्क का रास्ता । मंदिर के  वरिष्ठ पुजारी श्री जसा राम बताते है कि  चित्र गुप्त   की  कचहरी  में जीव के खड़े होने के लिए उल्टे पद चिन्ह निर्मित किए गए है । मान्यता  के अनुरूप म्रत सूक्ष्म शरीर के पाँव उल्टे होते   हें ।  मंदिर के साथ  ही अढ़ाई-पोडी (सीडियों )  निर्मित है  जिसमें   जीव कर्म के अनुसार गति करता है ।

      श्री  धर्म राज मंदिर के समीप ही परम तपस्पि स्वामी श्री जय कृष्ण गिरी जी महाराज का मंदिर है    स्थानीय  लड़कियों को शिक्षित करने हेतु  किए विशेष कार्यों , लोगों में  धार्मिक, सामाजिक व् नैतिकता  के स्तर को ऊपर उठाने के लिए श्रद्धेय स्वामी जी  को  स्थानीय लोग  भगवान स्वरूप  पूजते है । महायोगी  चरपट नाथ जी  के चंबा निवास करने के कारण  स्थानीय  लोग मंदिर परिसर को श्रद्धेय स्वामी श्री जय कृष्ण गिरी जी पावन उपस्थिति से ही 84 सम्पूर्ण मानते है ।
परिसर में  दसवीं शताब्दी में निर्मित भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का मंदिर भी है। शिखर शैली में निर्मित इस मंदिर एवं आस-पास के क्षेत्रों से मिली मूर्तियों से क्षेत्र में वैष्णव संप्रदाय का प्रभाव दिखाई देता है । इसके अलावा स्थानीय लोगों में विभिन्न धार्मिक   उत्सवों  में वैष्णव प्रभाव  नजर आता है।
 परिसर में शीतला माता ,चामुण्डा माता के मंदिर   स्थापित है।

लखना  माता मंदिर भरमौर।


 मंदिर परिसर में सांय काल होने वाली आरती  लोगों में धार्मिक आस्था के पुष्प  खिला देती है।